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बूँद बूँद पीड़ा छहरी है / कमलकांत सक्सेना

मेरे अल्हड़ जज्बातों को,
मत छेड़ो, मत छेड़ो,
वरना, एक लहर आयेगी,
एक लहर जायेगी।

मैंने कितनी बार कहा है, जाने कितना दर्द सहा है।
मौन तुम्हारे नयन रहे हैं, कोई कभी न अश्रु बहा है॥
मेरे प्यासे अरमानों को,
मत छेड़ों, मत छेड़ो,
वरना, एक लहर आयेगी,
एक लहर जायेगी॥

मेरी प्यास बहुत गहरी है, अधरों तक आकर ठहरी है।
मुस्कानों के घन गहराये, बूंद-बूंद पीड़ा छहरी है॥
मेरे व्याकुल मन सपनों को,
मत छेड़ो, मत छेड़ो,
वरना, एक लहर आयेगी,
एक लहर जायेगी।

प्यार यही होता है बोलो, रूप जला जाता है बोलो।
बिखरे हुए कुन्तलों बोलो, दूर खड़े हमराही बोलो॥
मेरे गीतज मनुहारों को,
मत छेड़ो, मत छेड़ो,
वरना, एक लहर आयेगी,
एक लहर जायेगी।