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बूंद गिरी / सुरेश विमल
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बूंद गिरी टप्प जी
भरा झील का कप्प जी
ऐसे उछले मेंढक जी
बोला पानी छप्प जी
पके गुलगुले रस वाले
चुनमुन गये हड़प्प जी
गये घूमने होलू जी
गिरे फिसलकर धप्प जी
बब्बन चाचा बैठ मजे में
हाँके दिन भर गप्प जी
धूप हुई गुम बादल काले
लगे बजाने ढप्प जी।