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बूढ़ा बरगद / विश्वासी एक्का

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सूखे पत्तों को बुहारते हुए
दुख जाती थी कमर
पके फलों के टपकने से
पट जाता था खलिहान ।

अब न घनी छाँव है
न ठण्डी हवा

आज उसके न होने से
कितना उदास है
पूरा गाँव ...।