भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बूढ़ो समन्दर / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
बूढ़ो समन्दर
सूतो सूतो
अचपळी लहराँ नै
गीरगटी कर’र रमावै,
लहराँ ऊँधी हुवै जणाँ
खूँजै में भेळा कर्योड़ा
संख-सीप तिसळ’र
रेत में रळ ज्यावै !