बृथा सु जन्म गंवैहैं / सूरदास
राग झिंझौटी
बृथा सु जन्म गंवैहैं
जा दिन मन पंछी उडि़ जैहैं।
ता दिन तेरे तनु तरवर के सबै पात झरि जैहैं॥
या देही को गरब न करिये स्यार काग गिध खैहैं।
तीन नाम तन विष्ठा कृमि ह्वै नातर खाक उड़ैहैं॥
कहं वह नीर कहं वह सोभा कहं रंग रूप दिखैहैं।
जिन लोगन सों नेह करतु है तेई देखि घिनैहैं॥
घर के कहत सबारे काढ़ो भूत होय घर खैहैं।
जिन पुत्रनहिं बहुत प्रीति पारेउ देवी देव मनैहैं॥
तेइ लै बांस दयौ खोपरी में सीस फाटि बिखरैहैं।
जहूं मूढ़ करो सतसंगति संतन में कछु पैहैं॥
नर वपु धारि नाहिं जन हरि को यम की मार सुखैहैं।
सूरदास भगवंत भजन बिनु, बृथा सु जन्म गंवैहैं॥
सूरदास जी कहते हैं - हे मानव! जिस दिन मन (आत्मा) रूपी यह पंछी उड़ान भरेगा उस दिन देह रूपी इस वृक्ष के सभी पत्ते टूटकर बिखर जाएंगे अर्थात् यह शरीर प्राणहीन हो जाएगा। इसलिए इस पंचभौतिक शरीर का तू गर्व न कर। इस शरीर को सियार, गिद्ध व कौवे ही खाएंगे। प्राणहीन होने पर शरीर की तीन ही गतियां होंगी अर्थात् या तो वह विष्ठा रूप हो जाता है या कीड़े पड़ जाते हैं या फिर भस्म बनकर उड़ जाता है। तब स्नान करना, सजना-संवरना, रंग-रूप सभी नष्ट हो जाएगा। हे मानव! मरने के पश्चात वही लोग तुझसे घृणा करने लगेंगे जिन्हें तू अपना मानकर प्यार किया करता था। ऐसी स्थिति होने पर घर के लोग तुझे घर से निकाल बाहर करेंगे। इस पर भी उनका कथन यह होगा कि कहीं भूत बनकर यह घर को न खा जाए। जिन पुत्रों की प्राप्ति के लिए हे मानव! तूने देवी-देवताओं को मनाया और जिन पुत्रों को तूने लाड़-प्यार से पाला वही पुत्र तेरी खोपड़ी फोड़ेंगे अर्थात् कपाल क्रिया करेंगे। इसलिए हे मूढ़ मानव! तू संतों का संग कर। ऐसा करने से तुझे कुछ ज्ञान ही प्राप्त होगा। यदि तूने मनुष्य का चोला धारण करके भी हरि भजन नहीं किया तो मरणोपरांत यम के कोड़े खाएगा। सूरदास जी कहते हैं कि ईश्वर के भजन बिना मनुष्य का यह तन रूपी धन पाना निरर्थक ही है।