भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेकार जीवन / बेढब बनारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जीवन में मैं कुछ कर न सका.
देखा था उनको गाड़ी में  
कुछ नीली नीली साड़ी में 
वह स्टेशन पर उतर गईं 
मैं उनपे थोड़ा मर न सका.
 
महिलाओं की थी भीड़ बड़ी 
गगरा-गगरी थीं लिए खड़ी
घंटों मैं कलपर खडा रहा 
फिर भी पानी मैं भर न सका.
 
सिनेमा तक उनका साथ किया
मैंने उनका भी टिकट लिया
भागीं मेरा भी टिकट लिए
मैं जा सिनेमा भीतर न सका.
 
वह गोरी थीं, मैं काला था
लेकिन उनपर मतवाला था
मैं रोज रगड़ता साबुन --
पर,चेहरे का रंग निखर न सका
 
अंग्रेजी ड्रेस उनको भाया 
इसलिए सूट भी सिलवाया 
सब पहन लिया मैंने लेकिन
नेकटाई-नाट सँवर न सका
 
सीधे रण में बढ़ सकता हूँ 
फाँसीपर मैं चढ़ सकता हूँ 
पर बेढब तिरछी चितवन के --
सम्मुख यह ह्रदय ठहर न सका.