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बेगम अख़्तर को सुनकर / अक्षय उपाध्याय
Kavita Kosh से
तुमको सुनना
अपने को सुनना है
तुमको गाना
अपने को गाना है
तुमको सुनता और
अपने को गाता हूँ
तुम
गा रही हो
हवा काँप रही है
तुम गा रही थीं
ऋतुएँ बदल रही थीं
तुम गा रही थीं
खेत पक रहे थे
बीज
वृक्ष होने को उद्यत थे
तुम गा रही थीं
हम और, और दीर्घायु हो रहे थे
तुम्हारी आवाज़ में
बच्चे हैं
तुम्हारी आवाज़ में
नए लड़के-लड़कियाँ हैं
तुम्हारी आवाज़ में
पुरखे हैं
तुम्हारी आवाज़ में
मेहनत करते लोग हैं
देखो
तुम्हारी आवाज़ में
एक समूची जाति है