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बेगाना / रेणु हुसैन
Kavita Kosh से
बहुत सोचा
बहुत खोजा
मगर तुमसे कोई रिश्ता नहीं निकला
फिर भी तुम लगते हो अपने-से
हुए वर्षों, मिले तुमसे
मगर तुम्हें ना भूल पाई मैं
कि जितना भूलना चाहा तुम्हें मैंने
तुम उतना याद आए हो
तुम किसी अनदेखे ख़्वाब से
बसे हो मेरी आंखों में
जाने क्यों छिपे बैठे हो
इस दिल के जज़बातों में
तुम नहीं अपने
फिर भी लगते हो अपने से
चेहरा ये बेगाना-सा है
पर बेगाने नहीं हो तुम