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बेघर / पूनम सूद
Kavita Kosh से
मध्यप्रदेश बक्सवाहा के जंगलों में
हम परिंदों को मिले हैं विरासत में
सागौन, हेड़ा, पीपल, जामुन, महुआ के घने पेड़
ये पेड़ हमारी रियासत हैं
इस घने जंगल में आपसी भाईचारे से
ख़ुशी-ख़ुशी करते हैं हम बसर
इधर आ रही है खबर-
कुछ सियासतदानों ने हमारा जंगल
हीरा खनन के लिये दे दिया है लीज़ पर
सभी बुज़र्ग पेड़ हमारे काटे जायेगें
जड़े समाप्त हो जायेगीं तो हम कहाँ रह पायेगें
भय-भूख-गरीबी भाईचारा निगल जायेगी
क्हाँ तक रिफ्यूजी बन
हम रास्तों में कैम्प लगायेगें
पंख जब थक जायेगें
हम स्वयं पिंजड़ो के शरणार्थी बन जायेगें।
हम पशु परिदें-इतिहास नहीं जानते
पर सुना था सन सैंतालीस में भी
कई बेघर हुए थे।