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बेटियाँ / जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’

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गीतगोविन्द का ध्यान हैं बेटियाँ।
शायरी की मसृण तान हैं बेटियाँ।
चन्द्रमा की मनोहर कला-सी पलीं
पुष्प की मुक्त मुसकान हैं बेटियाँ॥

छन्द के मर्म का बोध हैं बेटियाँ।
व्याकरण-धर्म-सम्बोध हैं बेटियाँ।
भारती के कराम्बुज की वीणा ललित,
दिव्य दुष्यन्त का शोध हैं बेटियाँ॥

रात्रिगन्धा की मनहर कली बेटियाँ।
पद्म की पंखुड़ी में ढली बेटियाँ।
सृष्टि की दिव्य शोभा सदा से रहीं,
गीत के वंश की हैं लली बेटियाँ॥

कृष्ण की वेणु-सी बज रहीं बेटियाँ।
रुक्मिणी-सी सदा सज रहीं बेटियाँ।
प्रीति की राधिका को बनाकर ग़ज़ल,
गीत में छन्द में भज रहीं बेटियाँ॥

जाह्नवी का पुराख्यान हैं बेटियाँ।
दर्द का पूर्ण व्याख्यान हैं बेटियाँ।
वेदना के हिमालय शिखर से कढ़े,
गीत का गौरवाख्यान हैं बेटियाँ॥

काव्य का रागिनी सत्र हैं बेटियाँ।
भारती का कलित छत्र हैं बेटियाँ।
प्रीति की पाठशाला बनीं हर घड़ी,
दिव्य वात्सल्य का पत्र हैं बेटियाँ॥

राधिका-सी अनूठी बनीं बेटियाँ।
ज़िन्दगी में न झूठी बनीं बेटियाँ।
प्रीति की पाँखुरी से बनायी गयीं,
जानकी की अँगूठी बनीं बेटियाँ॥

मुक्त नभ-सी बनी हैं विशद बेटियाँ।
रागिनी की बनी हैं विरद बेटियाँ।
प्रीति की भागवत की भ्रमर-गीतिका,
नेह की श्रेष्ठतम उपनिषद बेटियाँ॥

गीत का शुचि अनुच्छेद हैं बेटियाँ।
शायरी का सकल भेद हैं बेटियाँ।
साम के सूक्त से अल्पना-सी सजीं,
भावना का यजुर्वेद हैं बेटियाँ॥

एक शाश्वत पुनीता-सी हैं बेटियाँ।
कृष्ण की दिव्य गीता-सी हैं बेटियाँ।
सत्य-आचार की संहिता-सी सदा,
राम की शक्ति सीता-सी हैं बेटियाँ॥