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बेटियाँ / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

सृष्टि की
नव सर्जना मे
कीर्ति शिखरों पर लिखी
वेद की
पावन ऋचाएँ
हैं हमारी बेटियाँ

मरुथलों में
प्यास की परितृप्ति
धरती हैं यही
पत्थरों पर गीत की
नव सृष्टि रचती हैं यही
पँखुरियों पर
गन्ध की
सुकुमारिकाओं सी सरल
तितलियों की भंगिमायें
हैं हमारी बेटियाँ।

पत्थरों पर
सिर पटकते
हम कहाँ भटके नहीं
प्यार के दो बोल को
तरसी हमारी बेटियाँ
स्वार्थ की अन्धी गली में
बूँद को भटका किये
स्वाति की पावन घटा
बरसी हमारी बेटियाँ।

स्वर्ण चषकों के
हलाहल-वारुणी
पीते रहे
ध्वंस पर
पीयूष का
वर्षण हुई हैं बेटियाँ
ये कभी अक्षत
कभी चन्दन
कभी कुंकुम हुयीं
प्रीति के प्रतिदान में
        अर्पण हमारी बेटियाँ