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बेटी के आगे जीत / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अब बेटी है बनी कलेक्टर,
बनी पुलिस कप्तान।
बड़े सूरमाओं तक के अब,
बेटी काटे कान।
बेटी बेटे से कुछ कम है,
सोच नहीं यह ठीक।
बेटी के आगे पसरी है,
जीत, जीत बस जीत।
कुश्ती भी लड़ती है, खेले,
हॉकी जैसे खेल।
मोड़ डालती धार नदी की,
पर्वत देती ठेल।
आसमान में उड़ जाती है।
बिना किये ही देर।
रख देगी अब पाँव चाँद पर,
बेटी देर सबेर।
रोशन करती है अब बेटी,
मात पिता का नाम।
उसको पढ़ने दो, बढ़ने दो,
करने दो कुछ काम।