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बेटी नहीं मेरी पत्नी है यह / गौरव पाण्डेय

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चाँद और तारे ताक रहे थे
अपलक
नजरें मिलते ही
पूछ बैठे शंकित इशारे से "यह कौन ?"

मुस्कुराता हूँ फुसफुसा कर बताता हूँ
अपने पैरों को गुड़ी-मुड़ी किए
मेरे सीने से चिपकी
जो ये सो रही है
बेटी नहीं यह पत्नी है मेरी
सुनते ही वे चमके फिर थोड़ा और खिल उठे

कभी-कभी यह
नींद में ही जब भीचने लगती है मुझे
तो मुझे भी याद आने लगता है मेरा बचपन
ऐसे ही चिपक कर सोता था मैं माँ के सीने से
बाद में बचपने के हर डर से बहुत दूर
सोता रहा पिता से लिपटकर
फिर बहुत दिनों तक
मेरे पास सोती रही छोटी बहन ऐसे ही

और अब जो ये
मेरे पास निश्चिन्त सो रही है
मेरी बेटी नहीं है मेरी पत्नी है ये

श्श्श्श्...!

सोने दो इसे
कि अभी तक तो पढ़ती रही है
परीक्षा है कल /उठना है इसे सुबह जल्दी...