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बेदर्द / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
मैंने निचोड़कर दर्द
मन को
मानो सूखने के ख़याल से
रस्सी पर डाल दिया है
और मन
सूख रहा है
बचा-खुचा दर्द
जब उड़ जाएगा
तब फिर पहन लूँगा मैं उसे
माँग जो रहा है मेरा
बेवकूफ तन
बिना दर्द का मन !