भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेदिया बैठल तोहे घुमिले महादेव / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

महादेव से यह जानकर कि वे पोस्ते और अफीम के सेवन के कारण अभी मलिनवदन हैं, गौरी दुलहा खोजने वाले ब्राह्मण, हजाम और अपने पिता को भला-बुरा कहने लगती है। गौरी ने शिवजी से उनकी उम्र के विषय में जिज्ञासा प्रकट की। शिवजी से यह सुनकर कि जिस दिन मेरा जन्म हुआ, उस दिन त्रिभुवन में प्रकाश फैल गया- गौरी खुशी से सबके लिए शुभकामना प्रकट करने लगी तथा उसे विश्वास हो गया कि मेरे पति त्रिभुवननाथ हैं।

बेदिया बैठल तोहें घुमिले<ref>गौर से देखते हैं; नशे के कारण चक्कर आना</ref> महादेव, किय तोरो बदन मलीन हे।
हमरो बाबाजी के हर दस बाहन, हुनकॉे उपजल पोसता<ref>पोस्ता</ref> हफीम<ref>अफीम</ref> हे॥1॥
उहे अमल<ref>उसी</ref> जब लागल गौरा दाइ, तइ<ref>उसी से</ref> हमरो बदन मलीन हे।
मरिहौं रे हजमा दुखित होइहो बभना, बाबाजी के होइहों छोट राज हे॥2॥
तीन भुवन बर कतहुँ न भेंटल, लै ऐलै<ref>ले आये</ref> तपसी भिखारी हे॥3॥
खिड़की के ओते ओते<ref>ओट से</ref> गौरी मिनती करे, कते दिन उमिर तोहार हे।
जहि दिन आहे गौरी हमरो जलम भेल, तीनों भुवन भेल इँजोर हे॥4॥
जीबिहें<ref>जीवित रहना</ref> रे हजमा सुखित होइहैं बभना, बाबाजी के बाढ़े छोट राज हे।
तीन भुवन केरा इहो बड़ सुन्नर, यहो रे भेंटल बड़ भाग<ref>बड़े भाग्य से</ref> रे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>