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बेरूत, दुनिया भर की रखैल / निज़ार क़ब्बानी / श्रीविलास सिंह

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बेरूत ! दुनिया भर की रखैल
हम स्वीकार करते हैं महान ईश्वर के समक्ष
कि हमें ईर्ष्या है तुमसे
चोट पहुँचाती है हमें तुम्हारी सुन्दरता
हम स्वीकारते हैं अब
कि हमने किया बुरा व्यवहार और ग़लत समझा तुम्हें
और नहीं थी हम में दया और हमने नहीं बख्शा तुम्हें
और हमने दी तुम्हें कटार फूलों की जगह
हम स्वीकार करते हैं न्यायी ईश्वर के समक्ष
हम ने तुम्हें चोट पहुँचाई, तुम्हें कष्ट दिया,
हम ने तुम्हें बदनाम किया और रुलाया तुम्हें
और हमने तुम पर लाद दिए अपने विद्रोह

ओ बेरूत !
तुम्हारे बिना संसार नहीं होगा पर्याप्त हमारे लिए
अब हम जान गए हैं कि तुम्हारी जड़ें हैं गहरी हमारे भीतर
अब हम जान गए हैं कि क्या अपराध किए हैं हमने
उठो, पत्थरों के ढेर के नीचे से
अप्रैल में बादाम के फूल की भाँति
ऊपर उठो अपने दुखों से
क्योंकि क्रान्ति उपजती है शोक के घावों से
उठो, सम्मान में वनों के,
उठो, सम्मान में नदियों के,
उठो, सम्मान में मानवता के
उठो, ओ बेरूत !