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बेसबब बात को कुछ और बढ़ाया जाए / के. पी. अनमोल
Kavita Kosh से
बेसबब बात को कुछ और बढ़ाया जाए
वक़्त कुछ देर यूँ ही साथ बिताया जाए
जो मेरे ख़्वाब की ताबीर निगल जाती है
उस हक़ीक़त को भी इक ख़्वाब दिखाया जाए
बाग़बां सोच में डूबा है बड़ी मुद्दत से
कैसे फूलों की नज़ाकत को बचाया जाए
पेशियाँ घर को निगलने को चली आई हैं
फ़ैसला आज तो मी लॉर्ड सुनाया जाए
क्या ग़ज़ब हो कि जिसे लोग समझते हैं दिल
मेरे सीने में वो पत्थर ही न पाया जाए
जिस तरफ ख़ून के धब्बे न चुभें आँखों में
मुझको तस्वीर का वो पहलू दिखाया जाए
ज़ीस्त गर मन के मुताबिक ही मिली है अनमोल
फिर ये क़िरदार सलीक़े से निभाया जाए