बे-तरह जागती हैं ग़र आँखें
झेलती नींद रात-भर आँखें। 
लब पर इन्कार की ही भाषा, पर
दे रहीं प्यार की ख़बर आँखें। 
मुझपे सबकी निगाह रहती हैं
और मेरी हैं आप पर आँखें। 
काम भी ठीक से नहीं होता
पालती बे-वजह जो डर आँखें। 
युद्ध हथियार से भले लड़िये
रखतीं दुश्मन पर तो नज़र आँखें। 
आपके ग़म का है असर "किंकर" 
हो गयीं आँसुओं से तर आँखें