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बे-दम हुए बीमार दवा क्यों नहीं देते / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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बेदम हुए बीमार दवा क्यों नही देते
तुम अच्छे मसीहा हो शफ़ा क्यों नहीं देते
दर्दे-शबे-हिज्राँ की जज़ा क्यों नहीं देते
खूने-दिले-वोशी का सिला क्यों नहीं देते
मिट जाएगी मखलूक़ तो इंसाफ़ करोगे
मुंसिफ़ हो तो अब हश्र उठा क्यों नहीं देते
हाँ नुक्तावरो लाओ लबो-दिल की गवाही
हाँ नग़मागरो साज़े-सदा क्यों नही देते
पैमाने-जुनूँ हाथों को शरमाएगा कब तक
दिलवालो गरेबाँ का पता क्यों नहीं देते
बरबादी-ए-दिल जब्र नहीं 'फ़ैज़' किसी का
वो दुश्मने-जाँ है तो भुला क्यों नहीं देते