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बे-मेहर हुक़्काम था सब कुछ उठा कर ले गया / ज्ञान प्रकाश विवेक
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बे-मेहर हुक़्काम था सब कुछ उठा कर ले गया
जिस तरह दरियाओं का पनी समन्दर ले गया
लोग शक करते रहे उस अजनबी पे दोस्तो
एक बच्चा उसको अपने घर के अन्दर ले गया
सारी बस्ती ने दिए सुल्तान को रेशम के थान
और बस्ती का जुलाहा बुनके खद्दर ले गया
मेज़, कुर्सी और सारी फ़ाएलें रक्खी रहीं
मेरी उम्मीदों का वो दफ़्तर उठा कर ले गया
इस क़दर तक़रीर की फ़िरक़ापरस्तों कि बस !
हर कोई जलती हुई बस्ती के मंज़र ले गया.