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बे-सबब हम से जुदाई न करो / 'फ़ायज़' देहलवी
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बे-सबब हम से जुदाई न करो
मुझ से आशिक़ से बुराई न करो
ख़ाक-साराँ को न करिए पामाल
जग में फ़िरऔन सी ख़ुदाई न करो
बे-गुनाहाँ कूँ न कर डालो क़त्ल
आह कूँ तीर-ए-हवाई न करो
एक दिल तुम से नहीं है राज़ी
जग में हर इक सूँ बुराई न करो
महव है ‘फाएज़’-ए-शैदा तुम पर
उस से हर लहज़ा बखाई न करो