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बैठी थी सखिन संग / गँग

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बैठी थी सखिन सँग,पिय को गवन सुन्यौ ,
            सुख के समूह में बियोग आगि भरकी.
गंग कहै त्रिविध सुगंध कै पवन बह्यो,
            लागत ही ताके तन भई बिथा जर की.
प्यारी को परसि पौन गयो मानसर कहूँ ,
           लागत ही औरे गति भई मानसर की.
जलचर चरे औ सेवार जरि छार भयो,
           तल जरि गयो,पंक सूख्यो भूमि दर की.