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बैठे जो शाम से तेरे दर पर सहर हुई / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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बैठे जो शाम से तेरे दर पर सहर हुई ।
अफ़सोस अय कमर कि न मुतलक ख़बर हुई ।।