Last modified on 31 अक्टूबर 2009, at 09:32

बैठे भंग छानत अनंग-अरि रंग रमे / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

बैठे भंग छानत अनंग-अरि रंग रमे,
अंग-अंग आनँद-तरंग छबि छावै है।
कहै 'रतनाकर' कछूक रंग ढंग औरै,
एकाएक मत्त ह्वै भुजंग दरसावै है॥

तूँबा तोरि, साफी छोरि, मुख विजया सों मोरि,
जैसैं कंज-गंध पै मलिंद मंजु धावै है।
बैल पै बिराजि संग सैल-तनया लै बेगि,
कहत चले यों कान्ह बाँसुरी बजावै है॥