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बैरंग चिट्ठी / नरेन्द्र कठैत
Kavita Kosh से
भैजी! तुम परदेसी!
अर मी देसी ह्वेकि बि
पाड़ी ह्वे ग्यों
पर मी चाणू छौं
जरा सि हथ फैलौणू
हौरि जगा मिल जौ
बुरु नि मण्यां !
वुन बि खन्द्वार ह्वे ग्या
तुमारु सरु घौर
जथगा लिपुण-घसुण मा लगौण
उथगा मा तक्खि फुण्ड
द्वी गज हौरि लै ल्या धौं !
बस्स! एक बार घौर ऐकि
यिं बचीं जगा-जमीन
म्यरा नौ कर जा धौं !
-तुमारि जग्वाळ मा
लैन्टाना
पुत्र श्री देसी खौड़।