बोए पेड़ बबूल के, खाना चाहे दाख ।
ये गुन मत परकट करे, मनके मन में राख ।।
मनके मन में राख, मनोरथ झूठे तेरे ।
ये आगम के कथन, कदी फिरते ना फेरे ।।
गंगादास कह मूढ़ समय बीती जब रोए ।
दाख कहाँ से खाए पेड़ कीकर के बोए ।।
बोए पेड़ बबूल के, खाना चाहे दाख ।
ये गुन मत परकट करे, मनके मन में राख ।।
मनके मन में राख, मनोरथ झूठे तेरे ।
ये आगम के कथन, कदी फिरते ना फेरे ।।
गंगादास कह मूढ़ समय बीती जब रोए ।
दाख कहाँ से खाए पेड़ कीकर के बोए ।।