भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोए पेड़ बबूल के, खाना चाहे दाख / गंगादास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोए पेड़ बबूल के, खाना चाहे दाख ।
ये गुन मत परकट करे, मनके मन में राख ।।

मनके मन में राख, मनोरथ झूठे तेरे ।
ये आगम के कथन, कदी फिरते ना फेरे ।।

गंगादास कह मूढ़ समय बीती जब रोए ।
दाख कहाँ से खाए पेड़ कीकर के बोए ।।