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बोझ मन सूँ जबै आसा'न के हट जामतु ऐं / सालिम शुजा अन्सारी

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बोझ मन सूँ जबै आसा'न के हट जामतु ऐं...
सबै आकास हु धरती सूँ लिपट जामतु ऐं....

बेदना मन की जो आ पामें न मन सूँ बाहर.....
टीस बन-बन कें बे सब्दन में सिमट जामतु ऐं....

का कहें कौन सूँ और कौन सुनैगौ अपनी....
सोर इत्तो है कि इब कान ही फट जामतु ऐं....

मन बटोही जो कबहुँ प्रेम डगर कूँ निकसै....
ईंट पत्थर सूँ डगर सगरी ही अट जामतु ऐं...

एक लँग मन है तौ इक लंग मेरी हुसियारी...
राह हर मोड़ दुराहे'न में फट जामतु ऐं....

साँच कों दैनी परै अग्नि परीक्षा "सालिम"...
झूट के हक्क में कानून उलट जामतु ऐं....