बोधोदय: बुद्धत्व / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
सहसा साधक मनमे बोधक ज्योति उगल दिनमान
अंधकार छटि गेल स्वयं, रवि लग कहु तिमिर वितान
पाओल ज्ञान क्षणिक संसारक दुख - सागर उतरोल
निर्वाणक पथ रथ चलइछ मध्यम गति शान्तिक टोल।।32।।
सांसारिक संस्कारक गतिविधि निरखि-परखि कय शोध
बुद्ध-शुद्ध नवजीवन पौलनि जन्म - मरण अवरोध
सुजाताक पायस स्वीकारल, सहल हिंस्र आघात
स्वर्ण जते तापित होइछ तत बढ़य चमक अवदात।।33।।
हिनक दृष्टिमे सृष्टि नवीने वचनहु कलना भव्य
दुरित गलित दुख सुख परिणामी देलनि दर्शन भव्य
आत्म-अनात्म विचार व्यर्थ थिक, संस्कारक सब खेल
जीव स्वयं संजीवन पबइछ शुद्ध जीवनक मेल।।34।।
सत्य अहिंसा साधनिका थिक माध्यम अन्तर्बोध
क्षण-क्षण परिवर्तित जीवनसँ निर्वाणक पथ शोध
शरण लेथु आश्रमी श्रावकहु श्रमणक जीवन शुद्ध
धर्म शोध हित, कर्म मर्म हित बुद्ध-बोध अविरुद्ध।।35।।
जय गोतम सिद्धार्थ बुद्ध जय ज्ञान-प्रबुद्ध महान
जनिक अवतरण दुःख सन्तरण हित जीवन अवदान
जय हे! नव अवतार नवम हरि हिंसा यज्ञ-विधान
धर्म देशना कयल भ्रमण कय श्रमण विहार निदान।।36।।