बोध-वचन / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
द्वेष-वैरसँ नहि तकर शमनक कीनहु उपाय
आगिक ताप न आगिसँ कतहु मिझाओल जाय
सैन्य सहस लय रिपु प्रबल जितथि न से जययुक्त
मनकेँ जे जीतय सहज से जग विजयी उक्त
कष्ट शरीरक, मृत्युहुक उर, ककरा नहि ह्वैछ
से बुझि अपनहि अनुभवें, हिंसा सुजन तजैछ
वृद्धाकेँ माता बुझिअ, तरुणी बहिनि समान
वालाकेँ पुत्री गुनिअ, मत तथागतक जान
श्रमण रहथि जग पंकमे पंकज जेना रहैछ
नहि कादो कलुषित करय, ने जल भिजा सकैछ
माथ मुड़ौनहु, पहिरनहु पीत वसन परिधान
त्याग विना किन्नहु केओ श्रमण न होथि निदान
शुचि विचारहिक टोप सिर, कवच चरित्र पुनीत
सत्य अहिंसा ढाल-असि गहि रिपु विषयहु जीत
फूल - फूलसँ बिन्दु रस मधु रचि मधुप जुड़ैछ
कन - कन यती गृहस्थसँ लहि समाज सजबैछ
भोगी संगतिमे बिता जीवन किछु नहि लभ्य
क्षण भरि योगी संग लहि किछु नहि रहय अलभ्य
वन बसनहु, गिरि-कन्दरा गहनहुँ, तीर्थहु जाय
छाया जनु माया न पुनि छोड़य मनुजक काय
तिय सुत बित भित-नित हमर जे दिन-राति गबैछ
अपनहु तन नहि पुनि अपन संग अंत बुझि लैछ
दिशा-काल अंतरहु रहि बोध-वचन सुख दैछ
दूरहु रहि रवि - शशि सभक घर - घर तिमिर हरैछ