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बोध कथा / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

तक्षशिलाक पाठशाला छल नामी, छात्र हजार
पढ़बै छला जतय ज्ञानी गुरु बोधसत्व अवतार
भर्ती भेल नवीन सत्रमे ‘पापक’ नामक छात्र
सभ खिसिअबै नाम लय ओकरा, उपहासक से पात्र
कानि-कलपि कहलक ओ गुरुसँ, हमर बदलि दी नाम
कहलनि सोचि कने, पहिने घुमि आबह जनपद - गाम
जे पसन्द हो देखि कहह, देबह से बदलि तुरंत
खुशी - खुशी से चलल नाम डेबक हित दूर - दुरंत
घुमइत - फिरइत पहुँचल नगरक कात नदी सुनसान
जीवक नामक मुइल व्यक्तिकेँ जरबै छल समसान
नाम जीवकहु मुइल सोचि से चिन्तामे पड़ि गेल
नामक ई विपरीत कोना परिणाम देखना गेल?
आगाँ बढ़ल, भिखारिनि भीख मङै छलि हाथ पसारि
पुछलक, के छह? ‘अनपुरना’ हम, दाना दी दू-चारि
चलल बाट धय हाट - बचारक देखल ततय अनूप
सेठ नाम कौड़ीमल बैसल मोहर गनइत चूप
सस्मित - विस्मित पुनि मन्दिर पर देखल नागा नग्न
पुछलक, की थिक नाम? पितम्बरदास, सूनि मन मग्न
फिरइत काल बूढ़ क्यौ टगइत चलइत छल समधान
जानल तकर ‘वीन कुामर’ नाम पुनि सुनि मुसुकान
फिरल गुरुक लग कहल, नाम सन्धानक की छल तत्त्व
अपने देल सुझाय, बुझल हम अभिधानक न महत्त्व