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बोध / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
आबेॅ हम्में
तोहरॅ नै आबै रॅ कारण
तोहरॅ मनॅ रॅ दुविधा
पूरा-पूरा समझी गेलॅ छियै।
हम्में नै समझेॅ पारलियै
कि भूली गेलॅ छेलियै
आपनॅ लिखलॅ बात
कि कोय भी चिट्ठी में तीरा पूछला प्रश्नॅ के
उत्तर हम्में साफ-साफ नै दियेॅ पारलियै
तोंय तेॅ कत्तेॅ बार हमरा बोलैलौ
आबै के रसता समझैलौ
मतुर की करियै पिया
चौखटी सें पार
गोड़ेॅ नै उठै छेलै हमरॅ
ठिक्के कहै छियौं पिया
प्यार जतना गहरा छै
ओकरा सें बेसी पहरा छै
अतना पर भी
तोंय हमरा एत्तेॅ मानै छॅ
ई जानी केॅ
हमरॅ दोहरा मरन हुवेॅ लागलॅ छै
आपनॅ लाचारी पर।
तोंय जे करलौ हमरा लेली
ऊ के करेॅ पारतै?
तोंय जत्तेॅ मान्हलॅ हमरा
ओत्तेॅ के मानतै?