रमिया माँ है वह अटरिया में अकेले बैठे-बैठे बुन रही है 
अपना भविष्य यादों के अनमोल 
और उलझे धागों से,
उसके सामने 
बिखरे हैं सवाल ही सवाल
वो सालों से खोज रही है 
उन अनसुलझे  
प्रश्नों के उत्तर
लेकिन आज तक भी नहीं मिल पाया है उसे कोई भी उत्तर ।
आज भी वे प्रश्न 
प्रश्न ही बने हुए हैं
वह जी रही है आज भी और जीती रहेगी युगों-युगों तक 
अपने सवालों के उत्तर पाने के लिए। वह आज भी 
पूछ रही है समाज से-
वह एक माँ है जिसने झेले हैं 
अनेक झंझावात। वह अपने हे मन से प्रश्न कर रही है-
क्यों नहीं है उसको बोलने का अधिकार या 
फिर अपनी बात को 
कहने का अधिकार, 
क्यों नहीं है अपनी पीड़ा को बाँटने का अधिकार, 
क्यों नहीं है?
ग़लत को ग़लत 
कहने का अधिकार ।
क्यों उसके चारों ओर 
लगा दी जाती है 
कैक्टस की बाड़ 
क्यों कर दिया जाता है ख़ामोश 
क्यों नहीं बोलने दिया जाता उसे ? 
यह प्रश्न अनवरत 
उठता रहता है मन में, 
बिजली- सी कौंधती रहती है मस्तिष्क में, 
बचपन से अब तक कभी भी 
अपनी बात को निर्द्वंद्व होकर कहने की 
हिम्मत नहीं जुटा पाई है वह ।
जब भी कुछ कहने का
करती है प्रयास
मुँह खोलने का 
करती है साहस 
वहीं लगा दिया जाता है चुप रहने का विराम ।
आठ की अवस्था हो 
या फिर साठ की 
वही स्थिति, वही मानसिकता आखिर किससे कहे 
अपनी करुण-कथा 
और किसको सुनाए
अपनी गहन व्यथा ! जन्म लेते ही 
समाज द्वारा तिरस्कार 
पिता से दुत्कार 
फिर भाइयों के गुस्से की मार ससुराल में पति के अत्याचार 
सास-ननद के कटाक्षों के वार 
वृद्धावस्था में बेटे की फटकार
बहू का विषैला व्यवहार 
सब कुछ सहते-सहते टूट जाती है वह,
क्योंकि उसे तो मिले हैं विरासत में सब कुछ सहने और 
कुछ न कहने के संस्कार । 
यदि ऐसा ही रहा 
समाज का बर्ताव
मिलते रहे 
उसे घाव पर घाव, ऐसी ही रही चुप्पी 
चारों ओर 
तो शायद मन की घुटन 
तोड़ देगी अंतर्मन को 
अंदर-ही-अंदर, 
फैलता रहेगा विष 
घुटती रहेंगी साँसें टूटती रहेंगी आसें
तो जिस बात को
वह करना चाहती है अभिव्यक्त
वह उसके साथ ही चली जाएगी, फिर इसी तरह 
घुटती रहेंगी बेटियाँ, 
ऐसे ही टूटता रहेगा उनका तन और मन, 
होते रहेंगे अत्याचार;
होती रहेंगी वे समाज की घिनौनी मानसिकता का शिकार |
कब बदलेगा समय
जब समाज के कथित ठेकेदार 
समाज की चरमराई व्यवस्था को 
मज़बूती देने के लिए
आगे आएँगे
क़दम बढ़ाएँगे,
जब नारी की बात 
उसकी पीड़ा,
उसकी चुभन, उसके मन का संत्रास 
समझेगा यह समाज, 
विश्वास है उसे 
कि वह दिन आएगा ज़रूर आएगा ।