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बोली सुनना चाहती हूँ / नवल शुक्ल
Kavita Kosh से
आज झुग्गी में सो जाओ, बापू!
गिट्टी पर मैं सो लूंगी
मेरी ओर बहुत मत देखो, माँ!
मैं आज शरमाऊंगी।
लोगो! आपस में झगड़ो
मैं बोली सुनना चाहती हूँ
मुझे मत हिलाओ बहन
आहट सुनो
धीरे-धीरे गाओ।
देवताओ, आओ, मेरे पास बैठ जाओ
हमारे घेरे की ज़मीन पर
हमारे आकाश के बीच
सबसे पवित्र वायुमंडल में
नाचो, गाओ
मेरी ख़ुशियों में आओ देवताओं
बहुत कम दिन हैं, बहुत कम रातें
अपना समय मेरे साथ बिताओ।