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बो दूँ कविता / बोधिसत्व
Kavita Kosh से
मैं चाहता हूँ
कि तुम मुझे ले लो
अपने भीतर
मैं ठंडा हो जाऊँ
और तुम्हें दे दूँ
अपनी सारी ऊर्जा
तुम मुझे कुछ
दो या न दो
युद्ध का आभास दो
अपने नाखून
अपने दाँत
धँसा दो मुझ में
छोड़ दो
अपनी साँस मेरे भीतर,
तुम मुझे तापो
तुम मुझे छुओ,
इतनी छूट दो कि
तुम्हारे बालों में
अँगुलियाँ फेर सकूँ
तोड़ सकूँ तुम्हारी अँगुलियाँ
नाप सकूँ तुम्हारी पीठ,
तुम मुझे
कुछ पल कुछ दिन की मुहलत दो
मैं तुम्हारे खेतों में
बो दूँ कविता
और खो जाऊँ
तुम्हारे जंगल में।