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ब्याजें खो गई हैं / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
बयाज़ें
जिन में
अनदेखे परिंदों के
पते लिक्खे
बयाज़ें
जिन में
हम ने फूलों की
सरगोशियाँ लिक्खीं
पहाड़ों के रमूज़ और
आबशारों की जुबां लिक्खी
बयाज़ें
जिन के सीने में
समुन्दर और सूरज की अदावत के थे अफ़साने
परिंदे और पेड़ों के
रक़म थे
बाहमी रिश्ते
हमारे इर्तिका की उलझनें
जिस से मुनव्वर थीं
बयाज़ें खो गई हैं
अब लुग़त हम से परीशाँ है