भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ब्याव किदा दुख पायो / कुंजन आचार्य
Kavita Kosh से
गोळी-बिस्कुट दन भर मांगै
छोरा-छोरी खावै।
गेणा-गांठा, कपड़ा-लŸाा
घरवाळी रै छावै।
नाक गळा में फंदो मारै
घरवाळा परणायो।
पंचां ब्याव किदा दुख पायो।
मनै बताता घणी सरम है
तनखा मारी कतरी।
खर्चा दन-दन बढ़ता जावै
बात करूं किण गत री।
आटा-दाळ सूं मूंघा वेग्या
जीव घणों अबकायो
पंचा ब्याव किदा दुख पायो।
पेट्रोल रा दाम है पट-पट
छड़ग्यो डीजल झट-झट।
गैस रसोई री भीषण है
किंकर चाले फट-फट।
अणी मूंघोड़ी गवरमेन्ट मने
तेल-तेल तरसायो
पंचां ब्याव किदा दुख पायो।