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ब्याह कन्हैया का / नज़ीर अकबराबादी

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जहां में जिस वक़्त किशन जी की, अवस्था सुध बुध की यारो आई।
संभाला होश और हुए सियाने, वह बालपन की अदा भुलाई॥
हुआ क़द उनका कुछ इस तरह से, कि कु़मरी जिसकी फ़िदा कहाई।
निकालीं तर्जे़ फिर और ही कुछ, बदन की सज धज नई बनाई॥
हुए खु़शी नंद अपने मन में बहुत हुई खु़श जशोदा माई॥1॥

जो सुध संभाली तो किशन क्या क्या, लगे फिर अपनी छबें दिखाने।
जगह-जगह पर लगे ठिठकने, अदा से बंसी लगे बजाने॥
वह बिछड़ी गौओं को साथ लेकर, लगे खु़शी से बनों में जाने।
जो देखा नंद और जसोदा ने यह कि श्याम अब तो हुए सियाने॥
यह ठहरी दोनों के मन में आकर करें अब उनकी कहीं सगाई॥2॥

फिर आप ही वह यह मन में सोचे कि इनकी अब ऐसी जा हो निस्बत<ref>सम्बन्ध, रिश्ता</ref>।
बड़ा हो घर दर, बड़े हों सामां, बहुत हो दौलत, बहुत हो हश्मत<ref>मान सम्मान</ref>॥
हमारे गोकुल में है जो ख़ूबी, इसी तरह की हो उसकी हुर्मत<ref>सम्मान</ref>।
वह लड़की जिससे कि हो सगाई, सो वह भी ऐसी हो खूबसूरत॥
हैं जैसे सुन्दर किशोर मोहन नवल दुलारे, कंुवर कन्हाई॥3॥

कई जो नारी वह बूढ़ियां थीं, जसोदा जी ने उन्हें बुलाया।
किसी को ईधर किसी को उधर सगाई ढूंढ़न कहीं भिजाया॥
जो भेद था अपने मन के भीतर, सो उन सभों के तईं जताया।
फिरीं बहुत ढूंढ़ती वह नारी यह थाा जसोदा ने जो सुनाया॥
न देखा वैसा घर इक उन्होंने न वैसी कोई दुलारी पाई॥4॥

वह नारियां जब यूंही आई तो बोली यूं और एक नारी।
है वह जो बरसाना इसमें हैगी बृषभानु की नवल दुलारी॥
है राधिका नाम उसका कहते बहुत है सुन्दर निपट पियारी।
कही यह मैंने तो बात तुमसे अब आगे मर्ज़ी जो हो तुम्हारी॥
करो सगाई लगन की उस जा कि इसमें हैगी बहुत भलाई॥5॥

यह सुन जसोदा ने जब खु़शी हो उधर को नारी कई पठाई।
चलीं वह गोकुल से दिल में खु़श हो वहीं वह बरसाने बीच आई॥
जहां वह घर कि बयां किया था वह नारियां सब उधर को धाई।
उन्होंने आदर बहुत सा करके मन्दिर के भीतर वह सब बिठाई॥
जो बैठी यह तो लगीं सुनाने, इधर उधर की बहुत बड़ाई॥6॥

जो कह चुकीं यह इधर उधर की तो फिर सगाई की बात खोली।
बड़े हो तुम भी, बड़े हैं वह भी, यह बात होवे तो खू़ब होगी॥
है जैसा सुन्दर उन्होंका लड़का, तुम्हारी सुन्दर है वैसी लड़की।
इधर भी दौलत उधर भी हश्मत, खुशी व खूबी तरह तरह की॥
उन्होंने अपनी बहुत जमाई, पर उनके दिल में न कुछ समाई॥7॥

जो राधिका की वह मां थीं कीरत यह सुनके बातें वह बोलीं हँस कर।
वह ऐसे क्या हैं जो अब हमारे जस और दौलत के हों बराबर॥
हैं जैसे वह तो सो ऐसे हैंगे हमारे घर के तो कितने चाकर।
हम अपनी लड़की उन्हें न देंगे, वह ऐसा क्या घर वह ऐसा क्या बर॥
करो हमारे न घर में तुम यां, अब इस सगाई की तब कहाई॥8॥

सुना जब उन नारियों ने यह तो चलीं इधर से वह शर्म खायीं।
बहुत ही मन में हो सुस्त अपने, वह फिरके गोकुल के बीच आई॥
सुनी जो बातें थी वां उन्होंने, वह सब जसोदा को आ सुनाई।
यह बातें सुनकर जसोदा मन में बहुत ख़फ़ा हो बहुत लजाई॥
सिवाय ख़फगी<ref>अप्रसन्नता</ref> के आगे कुछ वां, जसोदा माई से बन न आई॥9॥

जब उस सगाई न होने से वां बुरा जसोदा ने मन में माना।
तो भेद उनका कला से अपनी यह बिन जताये ही हरि ने जाना॥
कहा यह मन में कि कोई लीला को चाहिए अब उधर दिखाना।
बना के मोहन सरूप नित प्रति ही खू़ब बरसाने बीच जाना॥
गए वही हरि फिर उस मकां में और अपनी बंसी वह जा बजाई॥10॥

बजी जो मोहन की बांसुरी वां तो धुन कुछ इसकी अजब ही निकली।
पड़ी वह जिस-जिस के कान में आ, उसे सुध अपने बदन की बिसरी॥
भुलाई बंसी ने कुछ तो सुध-बुध, उधर झलक जो सरूप की थी।
हर एक तरफ़ को हर एक मकां पर, झलक वह हरि की कुछ ऐसी झमकी॥
कि जिसकी हर एक झलक के देखे, तमाम बस्ती वह जगमगाई॥11॥

सहेलियों संग राधिका जी, कहीं उधर को जो आन निकली।
सरूप देखा वह किशन जी का, उधर से उनकी सुनी वह मुरली॥
जूं ही वहाँ राधिका जी आई, सो ऐसी मोहन ने मोहनी की।
दिखाया अपना सरूप ऐसा, कि उनकी सूरत को देखते ही॥
इधर तो राधा के होश खोये, हर एक सहेली की सुध भुलाई॥12॥

दिखाके रूप और बजा के मुरली, फिर आये गोकुल में नंद लाला।
फिर एक कला की वह कितने दिन में, कि राधा गोरी को माँदा डाला॥
बहुत दवाऐं उन्होंने की वां, पै फ़ायदे ने न सर निकाला।
फिर आप मोहन ने बैद बनकर, दवा की थैली को वां संभाला॥
पुकारे बरसाने बीच जाकर कि अच्छी करते हैं हम दवाई॥13॥

इधर थे हारे दवाएं करके, सुनी उन्होंने जो बात उनकी।
बुलाके जल्दी मन्दिर के भीतर दिखाई राधा जो वह दुखी थी॥
उन्होंने वा कुछ दवा भी दी और दिखाए कुछ छू छू मंतरे भी।
पढ़ंत क्या थी वह एक कला थी, हुई वहीं अच्छी राधिका जी॥
हर एक ने की वाह-वाह हर दम, और अपनी गर्दन बहुत झुकाई॥14॥

हुई जो चंगी वह राधिका जी, तो सब मन्दिर में खु़शी बिराजी।
वह वृषभानु और सभी कुटुम के, यह बात मन बीच आके ठहरी॥
कि राधिका की सगाई इनसे करें तो हैगी यह बात अच्छी।
जो रस्म होती सगाई की है, वह सब उन्होंने खु़शी से कर दी॥
”नज़ीर“ कहते हैं इस तरह से हुई है श्री किशन की सगाई॥15॥

शब्दार्थ
<references/>