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ब्रह्मकौंल / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तब भाभी मोतीमाला खोसी<ref>निकाला</ref> गए मोसी,
गात की घाघुरी छोड़े लाज का मारा।
तब सजाये वन रघुकण्ठी घोड़ी,
चल भाभी मोतीमाला श्रवण<ref>सुनहरी</ref> द्वारिका
मेरो भैजी कृष्ण त्वै जागणू होलो।
बाँठी छई वा भाभी मोतीमाला-
हे लाडला बरमकौंल, मैं वचन बोलदू,
विमला रौतेलो होलो, जादव जायो
जब तू चन्द्रागिरि जालो।
मेरी भुली पत्थरमाला ब्याईक<ref>ब्याह कर</ref> लालो।
तब जैक<ref>कहीं, जाकर</ref> मैं द्वारिका जौलू,
नितर<ref>नहीं तो</ref> तू मेरी सात दाँ <ref>बार</ref> टाड<ref>टाँगों के नीचे से निकलना</ref> छोरी।
बरमकौंल न सूणे त्रिया को आणों<ref>ताना</ref>
त्रिया को आणो ह्वैगे कपाल का मुँडारो<ref>सिर दर्द</ref>।
माता आणो देन्दी<ref>देती</ref> मैं खाणो नी खाँदो,
बाबा आणो देन्दो, मैं काम नी जाँदो।
भाई आणो देन्दो मैं बाँट नी लेन्दो।
त्रिया को आणो ह्वैगे जिकुड़ी<ref>हृदय</ref> को बाण।
तब गैगे बरमी चन्द्रगिरि बीच,
तख रंद छयो गैरी नाग एक।
नागों मां कोण नाग भूपू नाग छायो।
रिंगदी<ref>घूमती</ref> अटाली<ref>हवेली</ref> छई वेकी, उड़दी<ref>उड़ती</ref> डंडयाली<ref>बैठक</ref>,
त्रिकूट का घाँड<ref>घंटे</ref> छया लग्याँ काँसी का घूँघर।
भौन<ref>भवन</ref> की चारी तरफ सात छई बाड़ी<ref>घेरे</ref>,
कनों भीतर जौलू सोचदू लाडलो बरमी।

ज जैकार करदो, सत करदू याद विमला को,
सती होली मेरी माता, साती<ref>सातों</ref> बाड़ी टपी जौलू।
तब मारे बरमीन रघुकुंठी घोड़ी थाप,
घोड़ी गगन मा चढ़ीगे, साती बाड़ी टपीगे।
पौंछी गए तब बरमी पत्थरमाला का भौन,
देखी तब वींन मोहनी मूरत साँवल सूरत
कंकरियालो माथो देखी वींन ढबरियाली पीठ।
मायादार<ref>प्यारभरी</ref> आंखी देखीन, बुराँस<ref>एक फूल, लाल</ref> को सी फूल।
नारी पत्थर माला तब मोहित ह्वै गए।
आँसुडी<ref>आँसू</ref> गेरदे वा, साँसुड़ी<ref>साँसें</ref> भरदे-
कै<ref>किस</ref> राज<ref>राज्य</ref> कू<ref>का</ref> होली, कै दसावर<ref>देश</ref> जालू?
यख केक<ref>किसलिए</ref> आयो वैरी का बदाण?
केक पंथ ग भूली, बाटो गै डूली,
कै बैरीन भरमायो, साधून सन्तायो?
तू अभी देख तेरी सौंली सूरत,
मेरो नाग डसी जालो।
लाडलो बरमी तब मुलकुल हैंसदो-
सूण<ref>सुन</ref> सूण पत्थरमाला, मैं पंथ नी भूल्यों<ref>भूला</ref>,
वैरीन नी भरमायो, साधून नी सन्तायो।
आणा<ref>ताना</ref> का ऊपर मेरी ज्वानी को विणास<ref>विनाश</ref>।
ब्याईक ली जाणी मैन तू पत्थरमाला।
जबरेक<ref>जब तक</ref> तेरु नाग नागलोक मां छ जायूं,
तबरेक<ref>तब तक</ref> द्वारिका चली जौला।
मुलकुल हैंसदी रानी पत्थरमाला-
यू ही बल लीक यख आयी?
कायरो नी होणू बरमी, सूण सूण

नारी चोरीक नी लि जाणी।
ठीक बोले त्वेन, अच्छा, हारी जीतीक जौलू।
लाडलो बरमी वींन पलंग बैठाये,
बजी गैन तबारे पलंग का घुंघर!
घांडू का स्वर पौंछीन नागलोक-
भिभड़ैक<ref>हड़बड़ाकर</ref> उठे भूपू नाग-
सूणा सूणा र नागों, मैं घर जांदो,
मेरा गढ़ मा रिपु पैदा ह्वैग।
लौट आये तब नाग चन्द्रागिरि गढ़ मा।
वेका<ref>उसके</ref> नाक को फुँकार चढ़न लैगे,
भादों को सी रवाड़ो<ref>बाढ़</ref> उस्कारा<ref>उसाँसें</ref> भरण लैगे
थरथर कंपीगे बरमी, कबूतर-सी बच्चा,
छिपी गैगे वो टुप<ref>चुप</ref> पलंग मा।
हे रानी पत्थरमाला कु छ तेरो छिपायूँ?
बतौ झट कैको आयो स्यो काल?
हे मेा नाग कैन<ref>किसने</ref> औणा<ref>आना</ref> साती<ref>सात</ref> बाड़ी<ref>घेरे</ref> टपीक<ref>लाँघकर</ref>,
तेरी मति कैन हरे?
भौं कुछ<ref>चाहे जो</ref> बोल तू रानी पत्थरमाला,
यख मनखी की बास छ औणी।
तब नाग आणा देण लैगे-
जु मेरी चन्द्रगिरी मा छिफ्यूं रलू,
वैसणी<ref>उसको</ref> मां का सुगन्ध छन!
अइऐ बरमी छेतरी<ref>क्षत्रिय</ref> को रोष,
छेतरी को रोष दूध-सी उमाल।
नी रै सके छिप्यूँ बरमी, ऐगे भैर<ref>बाहर</ref>,
देखीक नाग मुलकुल हैंसदो-
हाथी सामणे फ्यूँली को फूल,

बोल बोल छोरा, किलै<ref>किस लिए</ref> तू आई,
के रांडो को होये यो कुल को विणास
सूण सूण नाग, मैन तू साधण<ref>साधना, वश में करना</ref>,
साधीक त्वै पत्थरमाला ब्यैक ली जाण।
सुणीक बुरा वचन, नाग गुस्सा ऐगे,
कनो<ref>कैसे</ref> पकड़ीले<ref>पकड़ा</ref> नागन लाडलो स्यो बरमी।
बोल बोल छोरा तेरो कु छ बचौण वालो?
सूणसूण नाग, मरी जौलू बीती,
पर वैरीक मैं बाबू<ref>बाप</ref> नी बोलूँ।
दोसरो लपेटो मारी नागन-
बोल बोल कू त्वै बचौण वालो?
सूण सूण नाग, मैं बचौण वालो,
द्वारिका नारैण छ, कृष्ण भगवान।
गाडयाले नागन नागपाँस<ref>नागफाँस</ref>,
पड़ीगे भ्वां बरमी गेंडगू<ref>लकड़ी का टुकड़ा</ref> सी।
आंख्यों सेंवल<ref>काई</ref> सरीगे<ref>फैल गयी</ref>, दांतु मा कौड़ी<ref>कालापन</ref>।
सुपिनो ह्वैगे कृष्ण द्वारिका नारैण।
कमरी कुसाण<ref>टूटने</ref> लैगे, दूदो चचड़ाण<ref>दर्द</ref>
ओखी फफड़ाण<ref>फड़फड़ाने</ref> लैगीन माता विमला की।
आदेशू लगौंदू मैं गुरु गोरख,
बचैक लावा मेरा बरमी।
तब कृष्णन भौंर भेज्यों वीं रमोली,
तख<ref>वहाँ</ref> रंदू छयो सिदुवा रमोलो।
पौछीगे सिदुवा चन्द्रागिरी गढ़ मा,
छिपीगे नाग तिमंजल्या कोणी।
आदेशू लगौन्दू मैं गुरु सतनाथ,
भैर औ नाग आयो तेरो काल।

मात की दुहाई त्वै हे नाग,
गुरु से निगुरु ना होई।
सिदुवा छयो बांको भड़<ref>योद्धा</ref>,
एक ही चोट मा तैन नाग,
जती लम्बो तती चौड़ो कर्याले।
तब आयो वो बरमी का पास,
मारे वैन निल्लाट<ref>अक्षत</ref> को ताड़ो<ref>ताड़ा</ref>,
कांउर की जड़ी लिल्लाट<ref>माथा</ref> थापे।
खड़ो उठीगे तब लाडलो बरमी,
यनी जीता रया सजन पुरुष, पिरेमी<ref>प्रेमी</ref> भगत।
रानी पत्थरमाला तब स्यूंदोला<ref>माँग</ref> गाडदी<ref>निकालती</ref>,
धौली<ref>अलकनंदा</ref> जसो<ref>जैसा</ref> फाट<ref>पाट</ref>।
वेन्दुली<ref>बिन्दी</ref> रखदी कुमौं<ref>कुमाऊँ</ref> जसो घट<ref>घराट</ref>।
लाडला बरमी की सजीगे रघुकुंठी घोड़ी,
बजीन ढोल<ref>बाजा</ref> दमों ब्यौ का।
चलीगे पत्थरमाला को डोला, बुरांस जनो फूल,
मोतीमाला न भी पूरा कन्या बचन।
मोतीमाला पत्थरमाला द्वी बेणी,
चली ऐन दखिण द्वारिका।
मोतीमाला ब्याहेण कृष्णक तैं,
बरमीन ब्याहे पत्थरमाला।
इना रैन भगवान कला का पूरा,
द्वारिका बीच लोग मंगल गांदा।

शब्दार्थ
<references/>