ब्रह्मधाम / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'
रामनाम जपे जौन मन में विराग ले ले,
पावे ओही ब्रह्मधाम राम भगवान के।
मन बुद्धि बानी ग्यान तरक से परे राम,
जोगियो जतन करे पावे न महान के।
राम के हे अविगत अलख अनादि रूप,
उनके में सिमटल रूप हे जहान के।
जेकरा में जोगिया रमल रहे दिन रात,
लखे ओही राम रूप छोड़ अभिमान के।
मंगल भवन राम तेज के निधान धाम,
सब के सरन गति प्रभु बलवान जी।
दारिद दहन दुख मोचन कृपाल राम,
जिनका के जप हथी संभु भगवान जी।
कोसल अधीस जगदीस भव भंग राम,
बाँट हथी भगत के नित निरबान जी।
सिव जन रंजन के भव दुख भंजन के,
किंकर बनल हाथी नित हनुमान जी।
माया के अधीस गुन ग्यान के प्रमान राम
अधम औ आरत के अब तो उबारहु।
पाप के असुरजाल घेरले हे जिनगी के,
काट बन्ध जगदीस हमरा सँभारहुु।
निराधार जगवा में मिले न अधार इहाँ,
दे के अवलम्ब भव-कूप से निकालहु।
कपट कुचाल में ही जिनगी बँधल डोले,
संत के सुभाव दे के अब तो थिराबहु॥
राम अभिराम तू तो जिनगी के घनस्याम,
नेहिया के मेघ बन हमरा सिराबहु।
बूड़ली हे अभिमान-सिन्धु में समा के हम,
डूबल जे सिन्धु बीच ओकरा निकालहु।
रहली हे असहाय कोई न सहाय भेल,
नाथ ई अनथवा के पार तो लगाबहु।
जानकी रमन राम करुना-निधान धाम,
मोहतम मारतंड मोहबा नसाबहु।
राम के चरनिया में नेहिया लगा के मन,
हाथ जोड़ भज राम राघव दयाल के।
ठौर न ठिकाना कहीं तोरा नहीं ठाकुर भी,
डोल मत फंदा में पड़ल कलिकाल के।
जलवा अगाध जहाँ फँसे नाहीं मीन कहीं
गहले चरन-कंज रघुवर लाल के।
राम के चरन गह सबरी निहाल भेल,
गेल ऊ परम धाम हेर किरपाल के॥
बैरी नहीं बैर करे बाँको न बिगाड़े काम,
मिले जदि अवलम्ब राम किरपाल के।
तर गेल व्याध गज गीध गनिका निसाद,
अवलम्ब पाके बड़ राघव दयाल के।
मोह मदमान छोड़ राग में विराग भर,
भज मन आठो जाम राम ब्रह्मपाल के।
मिट जैंहे भवसूल भागिहें कराल काल,
सुनिहें जो राम नाम वेद लोकपाल के।
वेद औ पुरान गुन ग्यान के गुमान छोड़
लीन हो के भगति में भज मन राम के।
भगति सुलभ सब दिन सब देसवा में,
छोड़ के प्रप´्च भज मन घनस्याम के।
गह ले चरन-धाम कपट कुचाल छोड़,
विपति विदारन अमित छविधाम के।
मनमा में भर के भरोसा गुनगान कर,
नेह में निरत रह राम सुखधाम के।
कोई जो जमल नीक वासना के मनमा में,
ओकरा छुड़ाव ग्यान जल से पखार के।
मान मद मोहवा के धूरिया पड़ल जे हे,
बुधिया से ओकरा हटाब तू बहार के।
राम में लगाव मन नेहिया लगा के खूब,
निरमल जोत भर मनमा निखार के।
राम के भजन बिना दुखवा न टारे कोई,
टारे ओही रामनाम विमल अपार के॥
अगुन सगुन राम काल के भी महाकाल,
भुवन के ईस जगदीस के नमन में।
मथवा झुकौले हम आरत खड़ा ही देव
दुखिया तो ठौर पावे तोहरे सरन में।
कोटि कामदेव भी लजा हे रूपजाल देख
जुटल हे तोरे यप काम के सुमन में।
दौड़ दया-सिन्धु आज हमरा बचावे लागी
माया नाहीं बढ़े देत ब्रह्म के सदन में॥