ब्रह्माण्ड की रचना / सुरेन्द्र स्निग्ध
कई हज़ार वर्षों के बाद
माँ को आई है हल्की सी नींद
शान्त रहिए
चुप रहिए
बनाए रखिए निस्तब्धता
निस्तब्धता को करिए
और भी निस्तब्ध
एक तिनका भी अगर खिसका
एक हरी घास ने भी अगर ली
हल्की-सी साँस
टूट जाएगी माँ की नींद
स्फटिक से भी अधिक पारदर्शी
और आबदार माँ की नींद
सूरज को कहिए
कुछ दिनों के लिए त्याग दे ऊष्मा
कहिए पृथ्वी को
स्थगित रखे कुछ दिन
धूरी पर घूमना
जितनी नई कलियाँ हैं वृन्त पर
हल्के से तोड़ लीजिए
चटकेगी तो चटक जाएगी
माँ की नींद
ओस की बूँदों को कहिए
पत्तों पर गिरने के पल
न करें कोई आवाज़
चर-अचर शान्त रहिए
हज़ारों वर्षों के बाद
माँ की पलकों में
उतरी नींद को
कृपया, तोड़िए नहीं
ब्रह्माण्ड को रचते-गढ़ते
थक गई है माँ
थोड़ा विश्राम दीजिए।