भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ब्रेक-अप-5 / बाबुषा कोहली
Kavita Kosh से
उसने कहा कि खुद को मेरे हवाले कर दो
मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया
मैं उसके हवाले रही वो हवलदार हो गया
अजीब सज़ा है
बिना किसी गुनाह के हाथों में हथकड़ियाँ पड़ गईं
ज़िन्दगी की जमानत ली गई
और फिर सड़कों पर छोड़ दिया गया
मैं जो उसके हवाले रही
'हवा ले' रही हूँ बाहर की
बड़ी ख़राब हवा बहती है इन दिनों
सब कुछ बहा ले जाती है
बाबा भारती ने कहा था कि मत कहना किसी से
वर्ना कोई किसी का भरोसा न करेगा
सो न कहूँगी कुछ
हवा ले रही हूँ बहुरूपिये ज़माने की
हरे रंग से निर्वासित हूँ
बरगद से झरा सूखा पत्ता हूँ
कहाँ उड़ जाऊँ पता नहीं
हवा का रुख पता नहीं
फिर से इन बंजारन हवाओं के हवाले हूँ