भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भँवर में डूबियो के आदमी उबर जाला / मनोज भावुक
Kavita Kosh से
भँवर में डूबियो के आदमी उबर जाला
मरे के बा तऽ ऊ दरिया किनारे मर जाला
पता ई बा कि महल ना टिके कबो अइसन
तबो त रेत प बुनियाद लोग धर जाला
जमीर चीख के सौ बार रोके-टोकेला
तबो त मन ई बेहया गुनाह कर जाला
बहुत बा लोग जे मरलो के बाद जीयत बा
बहुत बा लोग जे जियते में, यार, मर जाला
अगर जो दिल में लगन, चाह आ भरोसा बा
कसम से चाँद भी अँगना में तब उतर जाला