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भक्तिकाल / संजय चतुर्वेद

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कई दिनों से लिखना भूले
यहाँ लोग कविता लिखते थे
शायद ऊब गए हैं बन्दे
पहले असल ख़ुदा लिखते थे

वे दिन भी मुश्किल के दिन थे
शोषण और दमन का हल्ला
उथल-पुथल नागर जीवन में
दुखी गाँव घर गली मुहल्ला
पर सन्तों ने हार न मानी
कठिन कर्म का थामा पल्ला
सच्चे की सच्चाई लेकर
छोटे लोग बड़ा लिखते थे

दुनिया में फैली हिंसा को
कितनी बार सहा लोगों ने
सगुण विश्व की चिन्ताओं से
आगे भी देखा लोगों ने
जो भी देखा उसे सगुण का
प्रतिसंसार कहा लोगों ने
कोलाहल में घिरे मनीषी
ध्वनि से बाहर क्या लिखते थे

घोर अभाव अन्धेरा आँगन
टिमटिम-सी सच्चाई होगी
बालसुलभ उम्मीद लगाए
सदियों की बीनाई होगी
बेसूरत की ख़ूबसूरती
पंचभूत में पाई होगी
सूरदास जैसे लोगों में
रूपाकार दुआ लिखते थे ।