भक्ति-भाव में डूबी नगरी,
घर-घर गोकुल धाम ।
द्वार - द्वार पर राधारानी ,
गली-गली में श्याम ॥
काँप रहे आरूढ़ मनोरथ ,
बंधन छूटेंगे।
बंदीगृह में जोत जली है ,
ताले टूटेंगे ।
आज अमावस की ड्योढ़ी पर
सिंदूरी है शाम ॥
मरुथल में भी मधुरस के अब
सोते फूटेंगे ।
निर्भय होकर ग्वाल-बाल-मन
माखन लूटेंगे।
अधर-अधर पर प्रेम सुधारस ,
अंतस् में घनश्याम ॥
वातायन का मौन मधुरतम
मुखरित चितवन में ।
नंदनवन की छवि उतरी है
उपवन-उपवन में ।
सगुण समन्वय रूपअलौकिक
मन-मंदिर अभिराम ॥