भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भक्त बनता हूँ मगर अधमों का सिरताज भी / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भक्त बनता हूँ मगर अधमों का सिरताज भी।
देखकर पाखंड मेरा हंस पड़े ब्रजराज भी।
कौन मुझसे बढकर पापी होगा इस संसार में।
सुन के पापों कि कहानी डर गये यमराज भी।
क्यूं पतित उनसे कहे सरकार तुम तारो हमें।
हैं पतितपावन तो रक्खेंगे अपनी लाज भी।
‘बिन्दु” दृग के दिल हिलादें क्यों न दीनानाथ का।
दर्द दिल भी साथ है औ’ दुखभरी आवाज भी।