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भगतालाभ / कालीकान्त झा ‘बूच’

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साधना-भावना
आँठी-गुद्दा
साधना क गंगा जे चललीह से-
चलिते रहलीह आ-
बिनु घूरल सागर मे समा गेलीह
ई छल, भगीरथ प्रयास।
हा! हन्त!
साधना क सेहन्ता क ई अंत!
रहि गेल भावना क जऽल
जे नहिएॅ जा सकऽल।
भरल रहल ओ आलय सँ सागर धरि,
सिनेहक भंगिमा पर एक बेर धूरऽ लेल,
सुअवसर पावि घूरल,
आ तहिया सँ-
गंगा लाल की हेतैक ककरो
भऽ गेलनि गंगे केॅ -
भगतालाभ!!
अर्थात् विद्यापति लाभ