भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भगत सिंह के लिए / शिव रावल
Kavita Kosh से
आज़ादी की दलीज़ पर
मौत की शम्मा पिघलती है
मैं सरफ़रोशी का जुगनू
मुझमें ज़ज़्बों की आँधी चलती है
मैं आनेवाले युवा कल का
कायम हौंसला हूँ
स्वाधीनता की मशाल की
असल चिंगारी भी मैं ही हूँ
मैं हूँ स्वतंत्रता के बाग़ानों का
इंक़लाबी बेख़ौफ़ भंवरा
ग़ुलामी का जन्मज़ात शत्रु
मेरी गूँज 'शिव' , बग़ावतें उगलती है