भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भगवान रौ रूप / सांवर दइया
Kavita Kosh से
अेक सुपनो हुवै टाबर री आंख में
भायलां सागै
रमतो-रमतो बणावै बो
रेत रौ घर
खुद बणावै
खुद ई मिटावै
साची ई मिटावै
साची कैवे मां-
टाबर भगवान रौ रूप हुवै।