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भज, भिखारी, विश्व-भरणा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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भज भिखारी, विश्वभरणा,
सदा अशरण-शरण-शरणा।
मार्ग हैं, पर नहीं आश्रय;
चलन है, पर निर्दलन-भय;
सहित-जीवन मरण निश्चय;
कह सतत जय-विजय-रणना।
पतित को सित हाथ गहकर
जो चलाती हैं सुपथ पर,
उन्हीं का तू मनन कर कर
पकड़ निश्शर-विश्वतरणा।
पार पारावार कर तू,
मर विभव से, अमर बर तू,
रे असुन्दर, सुघर घर तू,
एक तेरी तपोवरणा।