भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भज ले रे मन, गोपाल-गुना / मीराबाई
Kavita Kosh से
राग झंझोटी
भज ले रे मन, गोपाल-गुना॥
अधम तरे अधिकार भजनसूं, जोइ आये हरि-सरना।
अबिसवास तो साखि बताऊं, अजामील गणिका सदना॥
जो कृपाल तन मन धन दीन्हौं, नैन नासिका मुख रसना।
जाको रचत मास दस लागै, ताहि न सुमिरो एक छिना॥
बालापन सब खेल गमायो, तरुण भयो जब रूप घना।
वृद्ध भयो जब आलस उपज्यो, माया-मोह भयो मगना॥
गज अरु गीधहु तरे भजनसूं कोउ तर्यो नहिं भजन बिना।
धना भगत पीपामुनि सिवरी, मीराकीहू करो गणना॥
शब्दार्थ :- गुनां = गुणों का। साखी =साक्षी, प्रमाण। सदना =भक्त सदन, कसाई। रसना = जीभ। छिना =क्षण। धना =बड़ा, बहुत। गीध =जटायु से तात्पर्य है। धना = एक हरिभक्त। सिवरी = शबरी भीलनी।